🌍 जलवायु परिवर्तन और भारत में मौसम के खतरे: एक गंभीर चिंता
भारत में जलवायु परिवर्तन से मौसम के खतरे बढ़ रहे हैं। जानें तापमान वृद्धि, बाढ़, सूखा और समाधान के उपाय इस विस्तृत आर्टिकल में।
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) आज केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि एक वैश्विक संकट बन चुका है। भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह खतरा और भी गंभीर है क्योंकि यहां की जनसंख्या, कृषि, जल संसाधन और पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका सीधा असर पड़ता है। बढ़ते तापमान, अनियमित वर्षा, समुद्र स्तर में वृद्धि और चरम मौसमी घटनाएं (Extreme Weather Events) देश के सामाजिक और आर्थिक ढांचे को हिला रही हैं।
1. जलवायु परिवर्तन का भारत पर प्रभाव
भारत की भौगोलिक विविधता—हिमालय से लेकर समुद्री तट, रेगिस्तान से लेकर उष्णकटिबंधीय जंगल—जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को और भी जटिल बनाती है।
1.1 तापमान में वृद्धि

- भारत में पिछले 100 वर्षों में औसत तापमान लगभग 0.7°C बढ़ चुका है।
- गर्मियों में हीटवेव (Heatwaves) की संख्या और अवधि दोनों बढ़ रही हैं।
- 2022 में कई राज्यों में 49°C से ऊपर तापमान दर्ज हुआ।
1.2 वर्षा पैटर्न में बदलाव
- मानसून अब पहले से ज्यादा अनियमित हो गया है।
- कहीं बाढ़, कहीं सूखा—दोनों स्थितियां एक ही साल में देखने को मिलती हैं।
- किसान फसल चक्र की योजना बनाने में असमर्थ हो रहे हैं।
1.3 समुद्र स्तर में वृद्धि
- भारत के तटीय शहर जैसे मुंबई, चेन्नई और कोलकाता बाढ़ के खतरे में हैं।
- समुद्र का खारा पानी खेती योग्य भूमि और पीने के पानी को प्रभावित कर रहा है।
2. मौसम से जुड़े खतरे
2.1 चक्रवात (Cyclones)
- हाल के वर्षों में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में चक्रवातों की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ी है।
- उदाहरण: ताउते, यास, अम्फान जैसे तूफानों ने अरबों रुपये का नुकसान किया।
2.2 बाढ़ (Floods)
- असम, बिहार, उत्तर प्रदेश और केरल में हर साल बाढ़ से लाखों लोग प्रभावित होते हैं।
- जलवायु परिवर्तन के कारण अचानक और भारी वर्षा की घटनाएं बढ़ रही हैं।
2.3 सूखा (Drought)
- महाराष्ट्र, राजस्थान और कर्नाटक में पानी की कमी और सूखे की समस्या गंभीर हो गई है।
- कृषि उत्पादन पर इसका सीधा असर पड़ता है।
2.4 हीटवेव और ठंड की लहरें
- उत्तर भारत में गर्मियों में हीटवेव और सर्दियों में कोल्डवेव दोनों बढ़ रही हैं।
- इसका असर खासकर बुजुर्गों और बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ता है।
भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
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मौसम का असंतुलन
- कभी असामान्य रूप से लंबी गर्मी
- कभी समय से पहले ठंड का आना
- मानसून का समय बदलना
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कृषि पर असर
किसान मौसम पर निर्भर होते हैं, लेकिन अस्थिर मौसम फसलों को बर्बाद कर देता है। इससे खाद्य संकट और आर्थिक नुकसान होता है।
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बढ़ती प्राकृतिक आपदाएं
- उत्तराखंड, हिमाचल में भूस्खलन और ग्लेशियर फटना
- बंगाल और ओडिशा में चक्रवात
- केरल और असम में बाढ़
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मानव स्वास्थ्य पर असर
हीटवेव, डेंगू, मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा
हाल के उदाहरण
- 2023 में उत्तराखंड के जोशीमठ में भू-धंसाव: तेज़ बर्फबारी और ग्लेशियर पिघलने से जमीन खिसकने लगी।
- 2024 में महाराष्ट्र और गुजरात में हीटवेव: रिकॉर्ड तोड़ तापमान ने सैकड़ों लोगों की जान ली।
- असम में बाढ़: लाखों लोग बेघर हुए और फसलें नष्ट हो गईं।
3. जलवायु परिवर्तन के कारण
3.1 औद्योगिक प्रदूषण
- कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों का अत्यधिक प्रयोग।
3.2 वनों की कटाई
- शहरीकरण और कृषि विस्तार के कारण जंगलों का तेजी से सफाया।
3.3 प्लास्टिक और अपशिष्ट
- नदियों, झीलों और समुद्र में प्लास्टिक का प्रदूषण।
3.4 अनियंत्रित शहरीकरण
- बिना योजना के बढ़ते शहर और कंक्रीट का फैलाव।
4. समाधान और उपाय
4.1 नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग
- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जल विद्युत पर ज्यादा निवेश।
4.2 वनीकरण और वृक्षारोपण
- बड़े पैमाने पर पौधारोपण और जंगलों की सुरक्षा।
4.3 टिकाऊ कृषि
- जैविक खेती और पानी बचाने वाली सिंचाई तकनीकें।
4.4 जल संरक्षण
- वर्षा जल संचयन और नदियों का पुनर्जीवन।
4.5 जन जागरूकता
- स्कूलों और मीडिया में पर्यावरण शिक्षा को बढ़ावा।
5. भारत के सामने चुनौतियां
- जनसंख्या वृद्धि के साथ ऊर्जा और पानी की मांग बढ़ना।
- ग्रामीण इलाकों में जागरूकता और संसाधनों की कमी।
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए पर्याप्त सहयोग न मिलना।
6. निष्कर्ष
जलवायु परिवर्तन एक वास्तविक और गंभीर खतरा है, जो भारत के भविष्य को प्रभावित करेगा। समय रहते ठोस कदम उठाना जरूरी है, वरना आने वाले दशक में मौसम से जुड़े खतरे और भी बढ़ जाएंगे। सरकार, उद्योग और आम जनता—सभी को मिलकर समाधान की दिशा में काम करना होगा।
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