- बिनोद: पंचायत के स्टार, “बिनोद कौन है ? बिनोद का असली नाम क्या हैं ?
👉 यह कहानी है एक ऐसे अभिनेता की, जो किसी बड़े फिल्म स्कूल से नहीं निकला, ना ही उसके पास कोई ‘गॉडफादर’ था। लेकिन फिर भी उसने अपने साधारण जीवन और संघर्षों से अभिनय की दुनिया में अपनी खास पहचान बनाई। हम बात कर रहे हैं अशोक पाठक की — एक ऐसा नाम, जो वेब सीरीज़ ‘पंचायत’ के ‘बिनोद’ के रूप में हर दर्शक के दिल में उतर गया।
जहाँ आज के दौर में चमक-धमक और सोशल मीडिया की दुनिया में पहचान बनाना आसान नहीं, वहीं अशोक पाठक ने अभिनय को ही अपना अस्त्र बनाया। उनकी यह बायोपिक न सिर्फ एक कलाकार की यात्रा को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि गाँव की मिट्टी से भी सितारे जन्म ले सकते हैं।
👉बचपन और प्रारंभिक जीवन:बिनोद कौन है ?
अशोक पाठक का जन्म बिहार के एक छोटे से गाँव में हुआ। गाँव का माहौल साधारण, पारिवारिक और मेहनत पर आधारित था। पिता खेती-किसानी करते थे और माँ एक गृहिणी थीं। बचपन से ही अशोक में अभिनय की ललक थी। गाँव के मेलों और नाटकों में वे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते। जब स्कूल में “रामलीला” होती, तो अशोक हर बार कोई ना कोई अहम किरदार निभाते। गाँव के लोग कहते, “ई लड़का एक दिन टीवी पर जरूर दिखेगा।”
परंतु असल ज़िंदगी फिल्मों की तरह आसान नहीं होती। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। पढ़ाई के साथ-साथ अशोक को भी खेतों में हाथ बंटाना पड़ता था। लेकिन उनका सपना था – “अभिनेता बनना”, और इस सपने के लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार थे।
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👉पटना से मुंबई तक का सफर:
स्कूल के बाद अशोक ने पटना विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया। यहीं पर उन्हें रंगमंच की दुनिया ने अपनी ओर खींचा। पटना के थिएटर ग्रुप्स से जुड़कर उन्होंने नुक्कड़ नाटक, सामाजिक विषयों पर आधारित नाटकों में काम करना शुरू किया। यहीं पर उनकी अभिनय कला को नई दिशा और पहचान मिली।
परंतु एक कलाकार का सपना सिर्फ रंगमंच तक सीमित नहीं था। अशोक ने तय किया कि उन्हें मुंबई जाना है — सपनों की नगरी, जहाँ हर दिन हजारों लोग अपने भाग्य को आजमाने आते हैं।
मुंबई पहुँचना आसान था, लेकिन टिकना मुश्किल। शुरूआती दिनों में उन्होंने चॉल में किराये का छोटा सा कमरा लिया। दिन में ऑडिशन और रात में पार्ट टाइम काम करके गुज़ारा होता। कई दिनों तक खाली पेट सोने की नौबत आई, लेकिन अभिनय के प्रति उनकी लगन ने कभी उन्हें हारने नहीं दिया।
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👉ब्रेकthrough: बिनोद: पंचायत के स्टार
2020 में, OTT प्लेटफ़ॉर्म Amazon Prime Video पर आई वेब सीरीज़ ‘पंचायत’ ने पूरे देश को झकझोर दिया। सादगी, हास्य और गांव की संस्कृति से भरपूर इस सीरीज़ ने हर वर्ग के दर्शकों को छू लिया।
इस सीरीज़ में अशोक पाठक ने ‘बिनोद’ नामक एक छोटा लेकिन यादगार किरदार निभाया। बिनोद, सचिव जी का सहायक, कम बोलता था लेकिन उसकी टाइमिंग और चेहरे के हाव-भाव इतने प्रभावशाली थे कि वह हर दर्शक को याद रह गया।
सोशल मीडिया पर मीम्स बनने लगे –
“सचिव जी, बिनोद को बुलाइए।”
“बिनोद, फाइल ले आओ।”
लोग पूछने लगे, “कौन है ये बिनोद? कौन है ये एक्टर?” और यहीं से अशोक पाठक को असली पहचान मिली।
👉अभिनय शैली और पहचान:
अशोक पाठक की सबसे बड़ी ताकत है – प्राकृतिक अभिनय (Natural Acting)। वे चेहरे से अभिनय करते हैं, आँखों से संवाद करते हैं। उनके अभिनय में कोई बनावट नहीं होती, यही वजह है कि वे हर रोल में सहज लगते हैं।
उनका मानना है – “जब आप खुद को किरदार में खो देते हैं, तभी दर्शक आपको पहचानता है।”
‘पंचायत’ के बाद उन्होंने ‘गिल्टी माइंड्स’, ‘कटहल’, और कई अन्य प्रोजेक्ट्स में भी छोटे मगर महत्वपूर्ण किरदार निभाए। आज वो हर डायरेक्टर के ‘रियलिस्टिक एक्टर’ की लिस्ट में शामिल हैं।
👉व्यक्तिगत जीवन और सोच:
- अशोक पाठक अब भी खुद को ज़मीन से जुड़ा इंसान मानते हैं। उनकी ज़िंदगी में स्टारडम नहीं, बल्कि सच्चाई है। वे गाँव के बच्चों के लिए मुफ्त एक्टिंग वर्कशॉप्स कराते हैं। उनका सपना है – “गाँव के हर बच्चे को मंच मिले, जहाँ वो अपनी प्रतिभा दिखा सके।” ये हैं बिनोद: पंचायत के स्टार❤️
वो कहते हैं,
“मैं जहाँ से आया हूँ, वहाँ सपनों को पाँव नहीं मिलते, लेकिन अगर हौसला हो, तो रास्ते अपने आप बन जाते हैं।”
उनकी सादगी, संघर्ष और संवेदनशीलता उन्हें एक बेहतर कलाकार ही नहीं, एक बेहतर इंसान भी बनाती है।
👉आलोचनाएं और चुनौतियाँ:
जहाँ सफलता मिलती है, वहीं आलोचनाएं भी साथ आती हैं। कुछ लोगों ने उन्हें ‘ओवररेटेड’ कहा, तो कुछ ने ये भी कहा कि “वो सिर्फ सपोर्टिंग रोल्स के लिए ही बने हैं।” लेकिन अशोक इन बातों को ज़्यादा महत्व नहीं देते।
उनका जवाब होता है –
“अगर मैं सपोर्टिंग हूँ, तो कहानी मजबूत है। हर हीरो के पीछे एक मजबूत सहायक किरदार होता है, और मैं वही हूँ।”
विनोद की भविष्य की योजनाएं:
अशोक पाठक अब फिल्म निर्माण में भी रुचि ले रहे हैं। वे एक शॉर्ट फिल्म डायरेक्ट कर चुके हैं जो सोशल थीम पर आधारित थी – ‘लालटेन’, जो एक गाँव के बच्चे की शिक्षा की कहानी थी।
वो चाहते हैं कि आने वाले वर्षों में गाँवों और छोटे शहरों की कहानियों को मंच मिले। उनकी दृष्टि सिनेमा को ‘शो ऑफ’ से हटाकर ‘रियलिटी’ की तरफ ले जाने की है।
👉निष्कर्ष:
अशोक पाठक की यह यात्रा सिर्फ एक अभिनेता की नहीं, बल्कि हर उस इंसान की है जो सीमित साधनों के बावजूद असीम सपने देखता है। ‘बिनोद’ जैसे छोटे रोल से लोकप्रियता पाने वाला ये कलाकार हमें यह सिखाता है कि प्रतिभा को चिल्लाने की जरूरत नहीं, बस सच्चाई से निभाने की जरूरत होती है।
उनकी कहानी हर संघर्षशील युवा के लिए एक प्रेरणा है — कि छोटे गाँवों से भी बड़े कलाकार निकल सकते हैं, बशर्ते इरादा पक्का हो और अभिनय दिल से हो।
“अशोक पाठक एक किरदार नहीं, एक आंदोलन हैं – जो ये बताते हैं कि कैमरे के सामने चमकने से पहले, आत्मा में सच्चाई का उजाला होना ज़रूरी है।”
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