रूस को लेकर नाटो ने भारत को दी चेतावनी
- भारत-रूस संबंध:
भारत और रूस के बीच संबंध दशकों पुराने और बहुआयामी हैं। सोवियत युग से ही रूस ने भारत को:
- सामरिक तकनीकें (जैसे कि मिग-21, ब्रह्मोस मिसाइल),
- सुरक्षा परिषद में समर्थन,
- ऊर्जा और परमाणु सहयोग,
- अंतरिक्ष और रक्षा तकनीक में साझेदारी प्रदान की है।
आज भी भारत की रक्षा आपूर्ति का 60-70% रूस से आता है।
इसके अलावा, रूस ने कभी भारत की स्वतंत्र विदेश नीति में हस्तक्षेप नहीं किया, जिससे भारत के लिए रूस एक भरोसेमंद साझेदार बना रहा।
नाटो की चेतावनी का संदर्भ
नाटो द्वारा भारत को रूस के साथ संबंधों को लेकर दी गई चेतावनी का संबंध हाल की घटनाओं से जुड़ा है:
- रूस पर लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीद बढ़ाई – जिससे पश्चिमी देशों को लगा कि भारत रूस को आर्थिक रूप से संजीवनी दे रहा है।
- भारत का रूस के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास – नाटो के लिए यह संकेत है कि भारत अब भी रूस को सैन्य साझेदार मानता है।
- रूस-भारत द्विपक्षीय व्यापार में तेज़ी – भारत ने डॉलर की बजाय रूपया-रूबल में व्यापार को अपनाया।
इन बातों से नाटो को चिंता है कि भारत का यह रवैया पश्चिमी प्रतिबंधों को अप्रभावी बना सकता है।

नाटो की मुख्य आपत्तियाँ क्या हैं?
- रूस को “Legitimacy” देना
नाटो देशों का मानना है कि भारत जब रूस के साथ द्विपक्षीय बैठकें करता है या सैन्य अभ्यास करता है, तो वह अनजाने में रूस के यूक्रेन पर हमले को “वैधता” प्रदान कर रहा है। - वैश्विक प्रतिबंधों को कमजोर करना
जब भारत रूस से सस्ते तेल और उर्वरक खरीदता है, तो इससे रूस को वह आर्थिक सहायता मिलती है जिसकी उसे ज़रूरत है। इससे पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का असर कम होता है। - चीन-रूस-भारत त्रिकोण की आशंका
नाटो को आशंका है कि यदि भारत रूस के ज़रिए चीन के और नज़दीक जाता है, तो यह पश्चिमी गठबंधन के लिए खतरा बन सकता है।
भारत की प्रतिक्रिया और स्थिति
भारत ने अब तक इस मुद्दे पर संतुलित और स्पष्ट रुख अपनाया है:
- भारत ने रूस की आक्रामकता की आलोचना नहीं की, पर कहीं भी युद्ध का समर्थन भी नहीं किया।
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस-विरोधी प्रस्तावों पर या तो मतदान से परहेज़ किया या अनुपस्थित रहा।
- प्रधानमंत्री मोदी ने भी सार्वजनिक रूप से पुतिन से कहा: “यह युद्ध का युग नहीं है।”
भारत का मानना है कि:
- वह अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता से समझौता नहीं करेगा।
- रूस उसके लिए एक पारंपरिक और भरोसेमंद सहयोगी रहा है।
- भारत को अपने ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा आपूर्ति और भू-राजनीतिक हितों को संतुलित करना है।
चीन का एंगल और नाटो की चिंता
पश्चिमी देश यह भी देख रहे हैं कि:
- रूस और चीन की नज़दीकी बढ़ रही है।
- भारत को लुभाने का उद्देश्य यह भी है कि उसे चीन के खिलाफ एक रणनीतिक साझेदार बनाया जाए।
- यदि भारत रूस के साथ गहरे रिश्ते रखता है, तो कहीं वह चीन के प्रभाव में न आ जाए – यह नाटो की बड़ी चिंता है।
अमेरिका और नाटो की भारत को लुभाने की कोशिशें
रूस को लेकर नाटो ने भारत को दी चेतावनी
- भारत को QUAD (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत) में शामिल किया गया।
- अमेरिका ने भारत को मेजर डिफेंस पार्टनर का दर्जा दिया।
- GE-F414 फाइटर जेट इंजन के संयुक्त निर्माण, और सेमीकंडक्टर निवेश जैसे प्रस्ताव भारत को रूस से दूर करने की कोशिशों का हिस्सा हैं।
लेकिन भारत ने साफ कर दिया है कि वह किसी भी सैन्य गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगा।
नाटो की चेतावनी: रणनीति या दबाव?
नाटो की यह चेतावनी एक प्रकार से राजनीतिक दबाव है, जिससे भारत को यह बताया जा सके कि यदि वह पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंध मजबूत करना चाहता है, तो उसे रूस से दूरी बनानी होगी।
इसका उद्देश्य:
- भारत को रूस से दूरी बनाने के लिए मजबूर करना।
- भारत को चीन के विरुद्ध रणनीतिक मोर्चे पर लाना।
- भारत को पश्चिमी टेक्नोलॉजी और बाजार का लालच देना।
भविष्य की दिशा: भारत क्या कर सकता है?
- रणनीतिक संतुलन बनाए रखना
भारत को रूस और अमेरिका दोनों से संतुलित संबंध रखने होंगे, जैसा उसने अब तक किया है। - रक्षा आपूर्ति में विविधता लाना
भारत को रूस पर निर्भरता कम कर अमेरिका, फ्रांस, इजराइल और स्वदेशी निर्माण की ओर ध्यान देना होगा। - ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना
रूस से सस्ता तेल भारत के लिए आवश्यक है, लेकिन उसे दीर्घकालिक योजना के तहत विकल्प भी तलाशने होंगे। - अंतरराष्ट्रीय मंच पर सक्रिय कूटनीति
भारत को बताना होगा कि उसका उद्देश्य “शांति और स्थिरता” है, न कि किसी एक गुट का समर्थन। - बदलता वैश्विक शक्ति संतुलनवर्तमान वैश्विक राजनीति में रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन की आक्रामक विदेश नीति और अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों की भूमिका ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों को एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। इस बदले हुए भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत की स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है। भारत, जो एक गैर-पक्षधर नीति (Non-Alignment) का प्रबल समर्थक रहा है, आज एक ऐसे दोराहे पर खड़ा है जहाँ उसे अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बनाते हुए वैश्विक शक्तियों के दबाव का सामना करना पड़ रहा है।ऐसे समय में नाटो (NATO) द्वारा भारत को रूस के साथ संबंधों को लेकर चेतावनी देना न केवल भारत की स्वतंत्र विदेश नीति पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि पश्चिमी शक्तियाँ भारत को किस प्रकार से अपनी रणनीतिक धारा में सम्मिलित करना चाहती हैं।
नाटो क्या है और इसका रूस से विरोध क्यों?
नाटो (North Atlantic Treaty Organization) एक सैन्य गठबंधन है जिसकी स्थापना 1949 में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने की थी। इसका उद्देश्य सामूहिक रक्षा है – अर्थात यदि किसी एक सदस्य देश पर हमला होता है तो उसे सभी देशों पर हमला माना जाएगा।रूस को लेकर नाटो ने भारत को दी चेतावनी!
रूस और नाटो के बीच विरोध शीत युद्ध के समय से चला आ रहा है। सोवियत संघ के विघटन के बाद जब नाटो ने पूर्वी यूरोप में अपने विस्तार की नीति अपनाई, तब से रूस इसे अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता आया है। यूक्रेन का नाटो में शामिल होने की संभावना ने ही 2022 में रूस को यूक्रेन पर हमला करने के लिए उकसाया।
- निष्कर्ष: भारत की राह कठिन पर स्पष्टनाटो की चेतावनी भारत के लिए नई नहीं है। ऐसे कई अवसर आए हैं जब भारत ने अपने हितों को सर्वोपरि रखते हुए वैश्विक दबाव को संतुलित किया है। यह चेतावनी भारत की कूटनीतिक परीक्षा ज़रूर है, लेकिन भारत का अनुभव, भू-राजनीतिक महत्त्व और संतुलित सोच उसे इस चुनौती से उबारने में सक्षम है।भारत को स्वतंत्र विदेश नीति, आर्थिक हित, और सुरक्षा प्राथमिकताओं को संतुलित करते हुए आगे बढ़ना होगा। रूस से दोस्ती, चीन से सतर्कता और अमेरिका से सहयोग – यह संतुलन ही भारत की शक्ति है।